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Dev Deepawali Night, Supermoon and Ratneshwar Mahadev Temple

Ratneshwar Mahadev Temple also known as Famous Broken Temple in Varanasi.

Near Manikarnika Ghat, Ghasi Tola, Varanasi.

 

( www.bhaskar.com/) पांच अलग कहानियां। मंदिर की AGE भी है कन्फ्यूजिंग...

 

- इस मंदिर का निर्माण कब हुआ था इसे लेकर भी अलग-अलग दावे हैं।

- रेवेन्यू रिकॉर्ड के मुताबिक इसका कंस्ट्रक्शन 1825 से 1830 के बीच हुआ।

- वहीं रीजनल आर्कियोलॉजी ऑफिसर के मुताबिक यह 18वीं शताब्दी में बनकर तैयार हुआ था।

- घाट के आसपास बसे पुरोहितों का मानना है कि रत्नेश्वर महादेव की स्थापना 15वीं सदी में हुई थी।

 

1. अहिल्या बाई ने दिया था श्राप

- पुरोहित श्याम शंकर तिवारी के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण अहिल्या बाई की दासी ने करवाया था।

- अहिल्या बाई होलकर शहर में मंदिर और कुण्डों निर्माण करा रही थीं।

- उसी समय रानी की दासी रत्ना बाई ने भी मणिकर्णिका कुण्ड के समीप शिव मंदिर निर्माण कराने की इच्छा जताई।

- निर्माण के लिए उसने अहिल्या बाई से पैसे उधार लिए थे।

- अहिल्या बाई मंदिर देख प्रसन्न थीं, लेकिन उन्होंने रत्ना बाई से कहा था कि वह इस मंदिर को अपना नाम न दे।

- दासी ने उनकी बात नहीं मानी और मंदिर का नाम रत्नेश्वर महादेव रखा।

- इस पर अहिल्या बाई नाराज़ हो गईं और श्राप दिया कि इस मंदिर में बहुत कम ही दर्शन-पूजन हो पाएगी।

- तभी मंदिर टेढ़ा हो गया और साल में ज्यादातर समय गंगा में डूबा रहता है।

 

2. संत के क्रोध ने किया टेढ़ा

 

- स्थानीय निवासी रमेश कुमार सेठ ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण किसी राजा ने करवाया था।

- 18वीं शताब्दी के आस पास कोई महान संत इस मंदिर पर साधना किया करते थे।

- संत ने राजा से मंदिर के रखरखाव और पूजन करने की जिम्मेदारी मांगी थी।

- राजा ने संत को मंदिर नहीं दिया, जिससे क्रोधित महात्मा ने श्राप दिया कि - जाओ यह मंदिर कभी पूजा करने लायक नहीं रहेगा, और मंदिर टेढ़ा हो गया।

3. पंडों को मिले श्राप से झुका मंदिर

 

- मंदिर की देखभाल करने वाले गोपाल मिश्रा ने भी अपना वर्जन बताया।

- गोपाल के मुताबिक यहां कभी एक महंत पूजापाठ करते थे।

- उन्हें यहाँ के पंडे तंग किया करते थे, जिससे वे क्रोधित होकर श्राप देकर चले गए।

- तब से आज तक इस मंदिर की पूजा बमुश्किल साल में केवल 4 महीने ही हो पाती है।

- बाकि 8 महीने मां गंगा ही अभिषेक करती हैं या बाढ़ की मिट्टी गर्भ गृह में पड़ी रहती है।

 

4. नहीं उतरा मां का कर्ज

 

- तीर्थ पुजारी राजकुमार पांडे ने बताया कि कथाओं के अनुसार 15 और 16वीं शताब्दी के बीच कई राजा-रानियां काशी वास के लिए आए।

- उनमें से एक थे मान सिंह।

- उनका सेवक (नाम का कहीं उल्लेख नहीं है) भी अपनी मां रत्नाबाई को लेकर काशी आया।

- वह अपनी मां के दूध का कर्ज उतारना चाहता था, जिसके लिए उसने शिव मंदिर का निर्माण करवाया।

- निर्माण के लिए उसने देश के कई हिस्सों से शिल्पकारों को बुलावाया।

- बेटा दूध का कर्ज उतारना चाहता है इस बात से मां की भावनाओं को ठेस लगी।

- जब बेटे ने मां से कर्ज की बात कहते हुए मंदिर में दर्शन करने को कहा तो वह बाहर से ही प्रणाम कर चली गई।

- बेटे ने रोककर कहा, मां अंदर दर्शन नहीं करोगी क्या? इस पर मां ने कहा कि कैसे करूं यह मंदिर तो सही बना ही नहीं।

- बेटे ने जैसे ही पलट कर देखा, वैसे ही मंदिर एक तरफ धंस गया और टेढ़ा हो गया।

 

5. अमेठी राज परिवार ने करवाया कंस्ट्रक्शन

- जिला सांस्कृतिक समिति के सचिव डॉ रत्नेश वर्मा के मुताबिक अमेठी राज परिवार ने 1857 में मंदिर का ढांचा खड़ा किया था, तभी से मंदिर टेढ़ा है।

- इसे जयपुर के शिल्पकारों ने बनाया था।

- मंदिर का आकर दुर्गा मंदिर की तरह था, इसलिए शिखर गुम्बदों पर शेर बना है।

- विष्णु अवतार और कृष्ण लीलाएं बनी है।

 

इंग्लिश स्पेशलिस्ट कर चुके हैं रिसर्च

- इतिहासकार एसके सिंह के मुताबिक 18वीं शताब्दी के आसपास जेम्स प्रिंसेप ने अपने द्वारा बनाए बनारस के स्केच में रत्नेश्वर महादेव मंदिर को उकेरा था।

- बताया जाता है कि अंग्रेजों ने भी मंदिर के टेढ़ा होने के पीछे काफी रिसर्च की थी।

- कई दिनों तक अंग्रेज विशेषज्ञों की टीम ने दौरा भी किया था।

 

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© Nimit Nigam || Nov. 2016

 

 

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Uploaded on November 16, 2016
Taken on November 14, 2016