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गौ एक अमूल्य स्वर्गीय ज्योति है, जिसका निर्माण भगवान ने मनुष्य के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप में पृथ्वीलोक में किया है। अत: इस पृथ्वी में गोमाता मनुष्य के लिये भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसादस्वरूप अमृतरूपी गोदुग्ध का पान कर मानवगण ही नहीं, किन्तु देवगण भी तृप्त और संतुष्ट होते हैं। इसीलिये गोदुग्ध को 'अमृत कहा जाता है। यह अमृतमय गोदुग्ध देवताओं के लिये भोज्य-पदार्थ कहा गया है। अत: समस्त देवगण गोमाता के अमृतरूपी गोदुग्ध के पान करने के लिये गोमाता के शरीर में सर्वदा निवास करते हैं।

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Uploaded on October 3, 2013
Taken on October 2, 2013