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भगवान नीलकंठ महादेव इस सृष्टि से उत्पन्न कालकूट (हलाहल) विष हो या मनुष्य के अन्दर विकाररुपी विष हो सभी को आनंद से ग्रहण कर लेते है और शरणागत की रक्षा करते है। इस पूरी सृष्टि में इनसा कोई सौम्य और भोला भी नहीं और ढूढ़ने निकलोगे तो भयानक भी कोई नहीं।

 

इनके डमरु की थाप सृष्टि का नाद है जो प्रत्येक जीव के हृदय में ध्वनि प्रतीक रुप में वास करती है। इस ब्रह्माण्ड का प्रत्येक कण इसी नाद पर नृत्य करता प्रतीत होता है। ध्यानियों और सन्यासियों के लिए यह नाद प्राण शक्ति का उर्ध्वगमन कराने वाली है और गृहस्थों के लिए यह नाद अधोपतन करती हुई मैथुनी सृष्टि का विस्तार करने वाली है।

 

वर्तमान समय में एक विषाणु के कारण पूरी सृष्टि त्राहिमाम कर रही है ऐसे समय में सृष्टि के रक्षक, जिन्होंने सृष्टि रक्षा के लिए कालकूट विष को अपने कंठ में धारण किया था उनका ध्यान करेंगे और उनसे प्रार्थना करेंगे की हे प्रभू इस महामारी से पूरे विश्व को मुक्त करें।

 

 

।। ॐ अघोरेभ्यो अथ घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः सर्वतः सर्व सर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः ।।

 

अर्थः जो अघोर है, घोर है, घोर से भी घोरतर है और जो सर्वसंहारी रुद्ररुप है, आपके उन सभी स्वरुपों को मेरा नमस्कार है।

 

गुरु राहुलेश्वर

भाग्य मंथन

 

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Uploaded on May 4, 2020
Taken on May 4, 2020