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जानिये आपकी कुंडली में कारक और मारक गृह कौन से है
जब कोई ज्योतिषी आपसे कहता है कि आपका भाग्योदय होने वाला है, या कहे कि आपका अच्छा समय चल रहा है या खराब समय चल रहा है या कहे कि फलां दौर आपका सबसे अनुकूल समय था,
तो उस समय ज्योतिषी आपकी कुण्डली के कारक और मारक ग्रह की दशा को देख रहा होता है।
क्यूंकि हमारे जीवन में जो भी होता है वह कारक और मारक ग्रहो की दशा और महादशा के अनुसार ही होता है।
कारक योग वह योग होते है, जिनकी दशा या अन्तर्दशा चलने पर आपको कम या अधिक पर लाभ जरूर होता है.
ठीक वैसे ही मारक योग इनके विपरीत होते है क्यूंकि मारकेश अर्थात-मरणतुल्य कष्ट या मृत्यु देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं।जिनकी महादशा या अन्तर्दशा के समय आपको अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और संबंधियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियां आती हैं।
मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए||
मारकेश-निर्णय के प्रसंग में यह सदैव ध्यान रखना चाहिए कि पापी शनि का मारक ग्रहों के साथ संबंध हो तो वह सभी मारक ग्रहों का अतिक्रमण कर स्वयं मारक हो जाता है। इसमें संदेह नहीं है।
मेष लग्न- मेष लग्न के लिए शुक्र दूसरे एंव सातवें भाव का मालिक है, किन्तु फिर भी जातक के जीवन को समाप्त नहीं करेगा। यह गम्भीर व्याधियों को जन्म दे सकता है। मेष लग्न में शनि दशवें और ग्यारहवें भाव का अधिपति होकर भी अपनी दशा में मृत्यु तुल्य कष्ट देगा।
वृष-वृष लग्न के लिए मंगल सातवें एंव बारहवें भाव का मालिक होता है जबकि बुध दूसरे एंव पांचवें भाव का अधिपति होता है। वृष लग्न में शुक्र, गुरू व चन्द्र मारक ग्रह माने जाते है।
मिथुन-इस लग्न में चन्द्र व गुरू दूसरे एंव सातवें भाव के अधिपति है। चन्द्रमा प्रतिकूल स्थिति में होने पर भी जातक का जीवन नष्ट नहीं करता है। मिथुन लग्न में बृहस्पति और सूर्य मारक बन जाते है।
कर्क-शनि सातवें भाव का मालिक होकर भी कर्क के लिए कष्टकारी नहीं होता है। सूर्य भी दूसरे भाव का होकर जीवन समाप्त नहीं करता है। लेकिन कर्क लग्न में शुक्र ग्रह मारकेश होता है।
सिंह-इस लग्न में शनि सप्तमाधिपति होकर भी मारकेश नहीं होता है जबकि बुध दूसरे एंव ग्यारहवें भाव अधिपति होकर जीवन समाप्त करने की क्षमता रखता है।
कन्या-कन्या लग्न के लिए सूर्य बारहवें भाव का मालिक होकर भी मृत्यु नहीं देता है। यदि द्वितीयेश शुक्र , सप्तमाधिपति गुरू तथा एकादश भाव का स्वामी पापक्रान्त हो तो मारक बनते है किन्तु इन तीनों में कौन सा ग्रह मृत्यु दे सकता है। इसका स्क्षूम विश्लेषण करना होगा।
तुला-दूसरे और सातवें भाव का मालिक मंगल मारकेश नहीं होता है, परन्तु कष्टकारी पीड़ा जरूर देता है। इस लग्न में शुक्र और गुरू यदि पीडि़त हो तो मारकेश बन जाते है।
वृश्चिक-गुरू दूसरे भाव का मालिक होकर भी मारकेश नहीं होता है। यदि बुध निर्बल, पापक्रान्त हो अथवा अष्टम, द्वादश, या तृतीय भावगत होकर पापग्रहों से युक्त हो जाये तो मारकेश का रूप ले लेगा।
धनु-शनि द्वितीयेश होने के उपरान्त भी मारकेश नहीं होता है। बुध भी सप्तमेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। शुक्र निर्बल, पापक्रान्त एंव क्रूर ग्रहों के साथ स्थिति हो तो वह मारकेश अवश्य बन जायेगा।
मकर-मकर लग्न में शनि द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है क्योंकि शनि लग्नेश भी है। सप्तमेश चन्द्रमा भी मारकेश नहीं होता है। मंगल एंव गुरू यदि पापी या अशुभ स्थिति में है तो मारकेश का फल देंगे।
कुम्भ-बृहस्पति द्वितीयेश होकर मारकेश है किन्तु शनि द्वादशेश होकर भी मारकेश नहीं है। मंगल और चन्द्रमा भी यदि पीडि़त है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
मीन-मंगल द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। मीन लग्न में शनि और बुध दोनों मारकेश सिद्ध होंगे। अष्टमेश सूर्य एंव षष्ठेश शुक्र यदि पापी है और अशुभ है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
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क्यूंकि हमारे जीवन में जो भी होता है वह कारक और मारक ग्रहो की दशा और महादशा के अनुसार ही होता है।
कारक योग वह योग होते है, जिनकी दशा या अन्तर्दशा चलने पर आपको कम या अधिक पर लाभ जरूर होता है.
ठीक वैसे ही मारक योग इनके विपरीत होते है क्यूंकि मारकेश अर्थात-मरणतुल्य कष्ट या मृत्यु देने वाला वह ग्रह जिसे आपकी जन्मकुंडली में ‘मारक’ होने का अधिकार प्राप्त हैं।जिनकी महादशा या अन्तर्दशा के समय आपको अनेक प्रकार की बीमारी, मानसिक परेशानी, वाहन दुर्घटना, दिल का दौरा, नई बीमारी का जन्म लेना, व्यापार में हानि, मित्रों और संबंधियों से धोखा तथा अपयश जैसी परेशानियां आती हैं।
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मेष लग्न- मेष लग्न के लिए शुक्र दूसरे एंव सातवें भाव का मालिक है, किन्तु फिर भी जातक के जीवन को समाप्त नहीं करेगा। यह गम्भीर व्याधियों को जन्म दे सकता है। मेष लग्न में शनि दशवें और ग्यारहवें भाव का अधिपति होकर भी अपनी दशा में मृत्यु तुल्य कष्ट देगा।
वृष-वृष लग्न के लिए मंगल सातवें एंव बारहवें भाव का मालिक होता है जबकि बुध दूसरे एंव पांचवें भाव का अधिपति होता है। वृष लग्न में शुक्र, गुरू व चन्द्र मारक ग्रह माने जाते है।
मिथुन-इस लग्न में चन्द्र व गुरू दूसरे एंव सातवें भाव के अधिपति है। चन्द्रमा प्रतिकूल स्थिति में होने पर भी जातक का जीवन नष्ट नहीं करता है। मिथुन लग्न में बृहस्पति और सूर्य मारक बन जाते है।
कर्क-शनि सातवें भाव का मालिक होकर भी कर्क के लिए कष्टकारी नहीं होता है। सूर्य भी दूसरे भाव का होकर जीवन समाप्त नहीं करता है। लेकिन कर्क लग्न में शुक्र ग्रह मारकेश होता है।
सिंह-इस लग्न में शनि सप्तमाधिपति होकर भी मारकेश नहीं होता है जबकि बुध दूसरे एंव ग्यारहवें भाव अधिपति होकर जीवन समाप्त करने की क्षमता रखता है।
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वृश्चिक-गुरू दूसरे भाव का मालिक होकर भी मारकेश नहीं होता है। यदि बुध निर्बल, पापक्रान्त हो अथवा अष्टम, द्वादश, या तृतीय भावगत होकर पापग्रहों से युक्त हो जाये तो मारकेश का रूप ले लेगा।
धनु-शनि द्वितीयेश होने के उपरान्त भी मारकेश नहीं होता है। बुध भी सप्तमेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। शुक्र निर्बल, पापक्रान्त एंव क्रूर ग्रहों के साथ स्थिति हो तो वह मारकेश अवश्य बन जायेगा।
मकर-मकर लग्न में शनि द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है क्योंकि शनि लग्नेश भी है। सप्तमेश चन्द्रमा भी मारकेश नहीं होता है। मंगल एंव गुरू यदि पापी या अशुभ स्थिति में है तो मारकेश का फल देंगे।
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