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यहाँ से जानिये अपनी कुंडली में बुद्ध गृह का फल - bit.ly/2HwafL1
आपके जन्म के समय मौजूद नक्षत्र, ग्रहों की स्थिति और गोचर के आधार पर ही व्यक्ति की जन्म कुंडली निर्धारित होती है, जिसके आधार पर वह अपना जीवन व्यतीत करता है।
जन्म कुंडली में ग्रह आपके जीवन का मार्गदर्शन करते हैं, अगर ग्रह सही स्थिति में नहीं हैं तो खराब फल देते हैं और अच्छी स्थिति में हैं तो शुभ फल प्रदान करेंगे।
वैदिक ज्योतिष में सप्ताह के प्रत्येक दिन के साथ 9 ग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का संबंध बनाता है। बुधवार सप्ताह का तीसरा दिन है, जिसका स्वामी बुध ग्रह है।बुध मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं। कुंडली के प्रथम भाव में बुध सर्वाधिक बली होते हैं, चतुर्थ एवं दशम भाव में कारक तथा सप्तम भाव में सर्वोत्तम परिणाम देते हैं।
कुंडली में सूर्य, शुक्र एवं राहु इनके मित्र ग्रह हैं तथा चंद्रमा शत्रु है।
नवग्रहों में बुध ग्रह को ग्रहपति और राजकुमार की संज्ञा प्रदान की गई है। आयु प्रधान ग्रह बुध प्रमुख रूप से बुद्धि, वाणी, व्यवसाय, ज्योतिष, दस्तकारी, गणित, चतुराई और चिंतन के स्वामी हैं।ज्योतिषीय की दृष्टि से बुध कम्युनिकेशन, नेटवर्किंग, विचार चर्चा एवं अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
कुल मिलाकर, ज्योतिष का मानना है कि बुध हम को सोचने की क्षमता, निष्कर्ष पर पहुंचने का बल, विचारों को समझने एवं आत्मसात का साहस, परिकल्पना को समझने की समझ, विचारों एवं ख्यालों को अभिव्यक्त करने की क्षमता, हमारी राय के बारे में दूसरों को समझाने की कला, दूसरों को हंसाने का फन, भीतर की भावनाआें को शब्दों में उतारने की क्षमता प्रदान करता है। जैसे कि चंद्रमा हमारी प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है, उसी तरह बुध हमारी प्रतिक्रिया के तरीके का प्रतिनिधित्व करता है या कह सकते हैं कि हम घटनाआें पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, उसमें बुध की भूमिका अहम होती है।
बुध हमे शुभ ग्रहों के साथ शुभ और अशुभ ग्रहों के साथ अशुभ परिणाम देते हैं।
यदि किसी कुंडली में बुध शुभ हों, तो ऐसे जातक को सभी कार्यों में सफलता मिलती है. आप के रिश्ते बहन, मौसी और बुआ के साथ अच्छे रहते हैं। आकर्षक व्यक्तितव के साथ ज्ञानी और चतुर होता है। सोच-समझ कर बोलने वाले होते है। इन की बातों का प्रभाव अन्य लोगों पर पडता है। ईमानदारी से काम ना करने पर बुध ग्रह अपनामशुभ प्रभाव छोड़ देता है। इस ग्रह के प्रभाव से सूंघने की शक्ति अच्छी होती है। व्यापार और नौकरी में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आती।
यदि किसी कुंडली में बुध अशुभ हों, तो आपको व्यापार, दलाली, नौकरी आदि कार्यों में नुकसान उठाना पड़ेगा। इस के अशुभ प्रभाव से सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है। समय से पहले दांतों का खराब होना। मित्र से साथ संबंधों का बिगड़ना, तुतलाहट, अशुभ प्रभाव से बहन, बुआ और मौसी के साथ संबध खराब होते हैं। शत्रु ग्रहों से ग्रसित बुध से नौकरी और व्यापार में नुकसान होता है। बुध का अशुभ प्रभाव संभोग की शक्ति क्षीण कर देता है.
लेकिन क्या आपकी कुंडली में बुद्ध शुभ है अशुभ इसके लिए कुंडली का विस्तृत विश्लेषण आवशयक होता है.क्यूंकि कुंडली विस्लेसन में ये जानना जरूरी है की गृह कारक है या मारक, कितनी डिग्री का है व् किस भाव में स्थित है आदि.इसके बाद ही पता चलता है की गृह आपके लिए शुभ है अशुभ।
इसी प्रकार बुद्ध आपकी कुंडली में शुभ है अशुभ तो इसके लिए हमें देखना होगा की बुद्ध लग्न कुंडली का कारक गृह बनता है या मारक, यह लग्न कुंडली के किसी शुभ भाव में स्थित है या कुंडली के तीन, छह, आठ अथवा बारहवें भाव स्थित है। यदि बुद्ध कुंडली का एक कारक गृह है और कुंडली के शुभ भाव में स्थित है केवल तभी अपनी दशा , अंतर्दशा में शुभ फल प्रदान करेगा ।
जैसे की अगर आपकी कुंडली में बुद्ध पहले भाव में है और शुभ है तो व्यक्ति दूसरों का प्रिय, ज्ञानवान, चिंतक, त्यागी, लेखक, गणितज्ञ, कवि, चिकित्सक, ज्ञान पिपासु तथा अपने धर्म पर मनन करने वाला होता है. वह जातक गंभीर व्यक्तित्व वाला, चरित्रवान, मधुरभाषी तथा संयमी होता है. उसमें किसी एक विषय में पारंगत होने तथा दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता होती है. वह जातक आयु के 10 वर्ष से ही प्रभावपूर्ण दिखने लगता है. वह जातक वाक्पटु और दूसरों को सहज ही मोहने वाला होता है.
अगर आपकी कुंडली में बुद्ध दूसरे भाव में है और शुभ है तो वह व्यक्ति को सुवक्ता, धनी, सलाहकार व बिचौलिया बनाता है. वह अपने प्रयास से अत्यधिक धन कमाने वाला, यात्रा प्रेमी, पाप से दूर रहने वाला, पवित्र तथा ज्ञान पिपासु होता है. वह जातक आयु के 26वें वर्ष में धन की हानि तथा 36वें वर्ष में
आकस्मिक धन लाभ कमा सकता है. वह जीवन में अच्छी वस्तुओं का शौकीन, परिवार का प्रिय तथा अपने कौषल विषेष रूप से वाणी द्वारा धन कमाने वाला होता है.
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वैदिक ज्योतिष में सप्ताह के प्रत्येक दिन के साथ 9 ग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का संबंध बनाता है। बुधवार सप्ताह का तीसरा दिन है, जिसका स्वामी बुध ग्रह है।बुध मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं। कुंडली के प्रथम भाव में बुध सर्वाधिक बली होते हैं, चतुर्थ एवं दशम भाव में कारक तथा सप्तम भाव में सर्वोत्तम परिणाम देते हैं।
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कुल मिलाकर, ज्योतिष का मानना है कि बुध हम को सोचने की क्षमता, निष्कर्ष पर पहुंचने का बल, विचारों को समझने एवं आत्मसात का साहस, परिकल्पना को समझने की समझ, विचारों एवं ख्यालों को अभिव्यक्त करने की क्षमता, हमारी राय के बारे में दूसरों को समझाने की कला, दूसरों को हंसाने का फन, भीतर की भावनाआें को शब्दों में उतारने की क्षमता प्रदान करता है। जैसे कि चंद्रमा हमारी प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है, उसी तरह बुध हमारी प्रतिक्रिया के तरीके का प्रतिनिधित्व करता है या कह सकते हैं कि हम घटनाआें पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं, उसमें बुध की भूमिका अहम होती है।
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यदि किसी कुंडली में बुध अशुभ हों, तो आपको व्यापार, दलाली, नौकरी आदि कार्यों में नुकसान उठाना पड़ेगा। इस के अशुभ प्रभाव से सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है। समय से पहले दांतों का खराब होना। मित्र से साथ संबंधों का बिगड़ना, तुतलाहट, अशुभ प्रभाव से बहन, बुआ और मौसी के साथ संबध खराब होते हैं। शत्रु ग्रहों से ग्रसित बुध से नौकरी और व्यापार में नुकसान होता है। बुध का अशुभ प्रभाव संभोग की शक्ति क्षीण कर देता है.
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जैसे की अगर आपकी कुंडली में बुद्ध पहले भाव में है और शुभ है तो व्यक्ति दूसरों का प्रिय, ज्ञानवान, चिंतक, त्यागी, लेखक, गणितज्ञ, कवि, चिकित्सक, ज्ञान पिपासु तथा अपने धर्म पर मनन करने वाला होता है. वह जातक गंभीर व्यक्तित्व वाला, चरित्रवान, मधुरभाषी तथा संयमी होता है. उसमें किसी एक विषय में पारंगत होने तथा दूसरों को प्रभावित करने की योग्यता होती है. वह जातक आयु के 10 वर्ष से ही प्रभावपूर्ण दिखने लगता है. वह जातक वाक्पटु और दूसरों को सहज ही मोहने वाला होता है.
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