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उफ़्फ़...काका की यादों में नेता जी..
#काका की उम्र लगभग 85 की सीमा लांघ कर हांफ रही थी । सारे अंगों ने यह कहते हुये काम करना कम कर दिया था कि ..काका खुद तो रिटायर होकर पड़े हो और हमें अभी भी घसीटे पड़े हो । बाकी का तो ठीक लेकिन याददाश्त तो मानो रुठ कर बैठी थी । कुछ फर्ज ही न निभाती । बेचारे काका 10 मिनिट पहले हुयी बात को भी भूल जाते...।
पड़ोस में रहते हैं तो कभी कभार औपचारिक बातचीत हो जाती है ।
आज घर से निकला तो शायद वो मेरी ही तलाश में घर के पोर्च में जमे थे ।
मैं घर से निकल कर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा तो अचानक हांफती आवाज में काका ने पुकार लिया..
"आसिष....ज़रा सुनो बेटा"
काका ने बुलाया...आश्चर्य लगा खैर बजाये गाड़ी में ठसने के काका की ओर बढ़ लिया ।
"प्रणाम...काका"
मैं आगे कुछ और बोलता इससे पहले ही काका ने टोक दिया..।
"अरे वो अब ठीक...तुम बताओ.. भोपाल से क्या #वो_पुराने_नेताजी चुनाव लड़ रहें हैं ?
बड़े बेसब्र थे उत्तर सुनने को..
मैंने कहा ..."हां.. काका'
फट से दूसरा सवाल टपका..
"वही जो पहले मुखिया भी थे ?
जी....काका
अरे वही लालटेन वाले ?
जी..शायद...।
मैंने भी एक संक्षित उत्तर आगे बढ़ा दिया ।
"वही जो अपने बयानों के लिये मशहूर है ?
लगातार सवालों से कोफ्त खाते हुये मैंने बजाय उत्तर देने के उलटा सवाल दाग दिया ..
"जब आपको सब याद है तो मुझ से क्यों पूछ रहे हो आप"
काका बोले.."बेटा इसलिये क्योंकि उन्होंने ने तो सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी ?
गजब ..काका की याददाश्त वैसे तो फूफा की तरह रुठी रहती थी लेकिन आज खूब भड़क रही थी ..। खैर मैंने स्पष्ट किया..।
"अरे काका ..सिर्फ 10 साल की बात थी वो तो...और अब अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिये फिर से सक्रिय हुये हैं" ।
काका के बूढ़े चेहरे पर व्यंग्य वाली मुस्कराहट आ गई..।
बोले..."सुनो...जब मुझे जैसे बूढ़े... जिसकी याददाश्त मेहमान की तरह रहती है...उसे सब याद है तो भला और मतदाताओं को याद न होगा?
सवाल तो था सौ टके का । खैर अपन ने काका को जय राम जी कहते हुये कर्मस्थली की राह पकड़ ली।
वहां कार सरपट दौड़ रही थी तो यहां ज़हन में सवाल कूद रहा था कि वाकई नेता जी ने एक बार फिर चुनावी संग्राम की ओर रुख तो कर लिया लेकिन #उफ़्फ़यह.. पुरानी छवि का साया ।
दरअसल..वर्तमान मुखिया जी की सोच या फिर और कोई समीकरण ?
कहा गया कि बडे नेता ऐसे गढ़ों में सेंध लगाने का काम करें जो विपक्ष के लिये महफ़ूज हैं । सो..सोच को आकार देते हुये पूर्व मुखिया जी को भोपाल लोकसभा सीट से कूदा दिया गया । हालांकि पूर्व मुखिया जी काफी धाकड़ नेता हैं और गोटियां बैठाने में बेशक माहिर...लेकिन छवि ज़रूर हिलोरें मार रही है और विपक्ष भी इस कमज़ोरी का लाभ सिर्फ भोपाल ही नही बल्कि अन्य 28 सीटों पर भी लेने को आमादा ..।
खैर ऊंट है....बैठने का मूड का कोई अंदाजा नही ...।
इंतज़ार करते है कि काका के दिमाग मे बैठी छवि दम मारती है या फिर मुखिया जी का दिमाग सारे समीकरणों पर भारी पड़ता है...
बस कुछ दिन और ?
www.uffyeh.com/content/uff-yeh-jindgi/meri-bhi-suno/uff-k...
उफ़्फ़...काका की यादों में नेता जी..
#काका की उम्र लगभग 85 की सीमा लांघ कर हांफ रही थी । सारे अंगों ने यह कहते हुये काम करना कम कर दिया था कि ..काका खुद तो रिटायर होकर पड़े हो और हमें अभी भी घसीटे पड़े हो । बाकी का तो ठीक लेकिन याददाश्त तो मानो रुठ कर बैठी थी । कुछ फर्ज ही न निभाती । बेचारे काका 10 मिनिट पहले हुयी बात को भी भूल जाते...।
पड़ोस में रहते हैं तो कभी कभार औपचारिक बातचीत हो जाती है ।
आज घर से निकला तो शायद वो मेरी ही तलाश में घर के पोर्च में जमे थे ।
मैं घर से निकल कर अपनी गाड़ी की ओर बढ़ा तो अचानक हांफती आवाज में काका ने पुकार लिया..
"आसिष....ज़रा सुनो बेटा"
काका ने बुलाया...आश्चर्य लगा खैर बजाये गाड़ी में ठसने के काका की ओर बढ़ लिया ।
"प्रणाम...काका"
मैं आगे कुछ और बोलता इससे पहले ही काका ने टोक दिया..।
"अरे वो अब ठीक...तुम बताओ.. भोपाल से क्या #वो_पुराने_नेताजी चुनाव लड़ रहें हैं ?
बड़े बेसब्र थे उत्तर सुनने को..
मैंने कहा ..."हां.. काका'
फट से दूसरा सवाल टपका..
"वही जो पहले मुखिया भी थे ?
जी....काका
अरे वही लालटेन वाले ?
जी..शायद...।
मैंने भी एक संक्षित उत्तर आगे बढ़ा दिया ।
"वही जो अपने बयानों के लिये मशहूर है ?
लगातार सवालों से कोफ्त खाते हुये मैंने बजाय उत्तर देने के उलटा सवाल दाग दिया ..
"जब आपको सब याद है तो मुझ से क्यों पूछ रहे हो आप"
काका बोले.."बेटा इसलिये क्योंकि उन्होंने ने तो सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली थी ?
गजब ..काका की याददाश्त वैसे तो फूफा की तरह रुठी रहती थी लेकिन आज खूब भड़क रही थी ..। खैर मैंने स्पष्ट किया..।
"अरे काका ..सिर्फ 10 साल की बात थी वो तो...और अब अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिये फिर से सक्रिय हुये हैं" ।
काका के बूढ़े चेहरे पर व्यंग्य वाली मुस्कराहट आ गई..।
बोले..."सुनो...जब मुझे जैसे बूढ़े... जिसकी याददाश्त मेहमान की तरह रहती है...उसे सब याद है तो भला और मतदाताओं को याद न होगा?
सवाल तो था सौ टके का । खैर अपन ने काका को जय राम जी कहते हुये कर्मस्थली की राह पकड़ ली।
वहां कार सरपट दौड़ रही थी तो यहां ज़हन में सवाल कूद रहा था कि वाकई नेता जी ने एक बार फिर चुनावी संग्राम की ओर रुख तो कर लिया लेकिन #उफ़्फ़यह.. पुरानी छवि का साया ।
दरअसल..वर्तमान मुखिया जी की सोच या फिर और कोई समीकरण ?
कहा गया कि बडे नेता ऐसे गढ़ों में सेंध लगाने का काम करें जो विपक्ष के लिये महफ़ूज हैं । सो..सोच को आकार देते हुये पूर्व मुखिया जी को भोपाल लोकसभा सीट से कूदा दिया गया । हालांकि पूर्व मुखिया जी काफी धाकड़ नेता हैं और गोटियां बैठाने में बेशक माहिर...लेकिन छवि ज़रूर हिलोरें मार रही है और विपक्ष भी इस कमज़ोरी का लाभ सिर्फ भोपाल ही नही बल्कि अन्य 28 सीटों पर भी लेने को आमादा ..।
खैर ऊंट है....बैठने का मूड का कोई अंदाजा नही ...।
इंतज़ार करते है कि काका के दिमाग मे बैठी छवि दम मारती है या फिर मुखिया जी का दिमाग सारे समीकरणों पर भारी पड़ता है...
बस कुछ दिन और ?
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